आज जब सूचना संग्रहण घातीय तौर पर बढ रहा है तथा परिवर्तन की गति त्वरित बन रही है, इतिहास का महत्व और भी बढ रहा है। कारण यह है कि डाटा विस्फोट के बीच हमारे पदचिह्नों को भूलना बहुत आसान है।
केन्द्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान प्रो. एम.एस.थाकर, तत्कालीन निदेशक, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक परिषद्, जिसने अपनी रिपोर्ट 1956 में सौंपी, की अध्यक्षता में "विद्युत इंजीनियरी अनुसंधान के लिए योजना समिति" की सिफारिश पर स्थापित की गई। समिति ने देश में विद्युत अनुसंधान के प्रभावी कार्यक्रम को चलाने की आवश्यकता पर जोर दी। विस्तार पाते विद्युत आपूर्ति उद्योग के संदर्भ में बेंगलूर में एक विद्युत अनुसंधान संस्थान तथा भोपाल में स्विचगियर परीक्षण तथा विकास केंद्र की स्थापना का विचार पेश किया गया, जिसके प्रभारी निदेशक होंगे। उसने छः प्रभागों, उच्च वोल्टता, वैद्युत इंजीनियरी, द्रवचालित इंजीनियरी, यांत्रिक इंजीनियरी, स्विचगियर परीक्षण तथा प्रशासनिक प्रभागों की योजना पेश की।
भारतीय विज्ञान संस्थान की प्रयोगशाला की उपलब्धता के कारण संस्थान के लिए बेंगलूर चुना गया। उसी प्रकार, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स संयंत्र (पूर्व में हेवी इलेक्ट्रिकल्स इण्डिया लि.) के वहॉं होने के कारण स्विचगियर परीक्षण तथा विकास केंद्र की स्थापना भोपाल में की गई। दोनों परियोजनाओं की लागत का प्राक्कलन रु.4.20 करोड लगाया गया।
तदनंतर श्री एस.स्वयम्भू, निदेशक, केंद्रीय जल तथा विद्युत आयोग (सीपीडब्ल्युसी) के अधीन परियोजना के ब्यौरों पर काम करने के लिए एक केंद्रक संगठन की स्थापना की गई। योजना आयोग की टिप्पणियों के मद्देनजर, निम्नानुसार तीन चरणों में "विद्युत अनुसंधान संस्थान" को स्थापित करने का निर्णय लिया गया:
प्रथम चरण-भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूर के विद्युत इंजीनियरी विभाग में शोध के लिए आवश्यक अतिरिक्त सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए योजना का सूत्रीकरण, ताकि अत्यावश्यक समस्याओं के शोध - कार्यक्रम को प्रारम्भ किया जा सके। भोपाल में स्विचगियर परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना के लिए योजना की तैयारी, ताकि तृतीय पंचवर्षीय योजना के पूर्वार्ध में प्रारम्भ किया जा सके।
द्वितीय चरण-बेंगलूर में दीर्घकालीन आधार पर विद्युत अनुसंधान के लिए आवश्यक उपस्कर तथा अन्य सुविधाओं युक्त पृथक प्रयोगशालाओं के लिए योजना तैयार करना।